Friday, 22 July 2016

                                                  जरुरत 

कैसे  कहू की जरुरत नहीं है तुम्हारी , 
आज भी तुम्हारी  यादें, मेरे सब उसूलो पर है भारी|। 
कैसे  कहू की जरुरत नहीं है तुम्हारी , 
क्या खता थी मेरी,  की तुमने मुझे खुद से दूर कर दिया,
बात करना तो दूर, देखने को भी मजबूर कर दिया|। 
गर्मी की उस तपिश में जो शीतलता का अहसाह तुमने दिया है,
 वो अहसास सारे बारिशो पर भी है भारी । 
तुम्ही से सिखा मैंने प्यार की परिभाषा,
आज तुम ही दे रहे मुझे नफरत की अभिलाषा। 
आज तक सहारा बनके साये की तरह रहे साथ ,
और अब कहते हो की, अब समझ में आई सारी बात । । 
समझ  नहीं आता किसके लिए मुस्कुराऊ, 
बिटिया बन के किसे दिखाऊ,
कितनी सारी बातें है मन में,
 सारी बाते किसे बताऊ।
तुमने तो बेसहारा बना दिया ॥ 
प्यार के नाम को ही  मिटा दिया,
पर सच कहू , तो आज भी मुझे उतनी  ही जरुरत है तुम्हारी, 
जितनी एक बिटिया को अपने पिता की जरुरत होती है। । 
प्यार की परिभाषा तो नहीं मालूम मुझे, 
पर लोग कहते है जिससे सच्चा प्यार हो, उसे उसमे ही अपने पिता दिखाई देते है॥ 
बहुत कोशिश की, की तुम्हे भूल जाऊ,
पर तुम्हारी यादें है मेरे दिल पर भारी॥ 
तुम हो मेरी  दुनिया सारी,
कैसे  कहू की जरुरत नहीं है तुम्हारी !!!!!!!!
                                                                                                                                                                                                                                                      अनामिका 


Monday, 18 July 2016


                                                           ज़िन्दगी रुत सी


ज़िन्दगी रुत सी,

कभी छाव सी, कभी धूप सी,

बदलते मौसम,बदलता जीवन,

बदलता समय,बदलते इंसान,

 काश की ये रुक सकते कुछ  पल के लिए, 

क्यों हर चीज़ बदलना चाहती है, 

कभी उम्र , कभी इच्छाऐ , कभी सोच, कभी आशायें,

हर कोई परेशान है, अपने लिए, 

जबकि जानता है की कुछ नहीं मिलने वाला,

किस्मत से ज़यादा , समय से पहले,

 हर इंसान खो चुका है अपनी मुस्कान,

बस आगे बढ़ने की चाहत है  शान, 

सब छुट रहे है रिश्ते, खो रहा  है ईमान,

वाह रे इंसान , यही है तेरी  पहचान, 

कुछ पल प्यार से जी के तो देखो,

लाखो पैसे से ज़यदा होगी उसकी जान, 

पैसे तो अरबो आ जाय सब यही छोड़ कर जाना है, 

बस प्यार और यादें है जिसे दिल में  बसाना है,

वाह रे इंसान , यही है तेरी  पहचान, 

ज़िन्दगी रुत सी,

कभी छाव सी, 

कभी धूप सी||| 

                                                                                                                                         Anamika


 

Wednesday, 29 June 2016

                                             पल (लम्हे)

नमस्कार दोस्तों ,                 

                    मेरे पल में मैं अनामिका आप सबका अभिवादन करती हूँ । मैंने अभी कुछ दिनों पहले ही ब्लॉग बनाना सिखा। बहुत दिनों  से सोच रही थी पर मुझे बनाना ही नहीं आता था खैर अब आ गया और मैंने बना डाला । मैं जयादा लिखना तो नहीं जानती, पर कभी-कभी कुछ- कुछ लिखने का मन जरूर करता है। चाहे वो ख़ुशी का पल हो वो गम का इसलिए मैंने अपने पेज का नाम रखा पल । क्यूंकि ये अच्छे और बुरे पल ही ऐसे होते है जिन्हे बरसो हम अपने यादो में बसा सकते है।  जब हम बहुत खुश होते है तो ये पल यादगार हो जाते है, जब हम उदासी में घिरे होते है तब भी ये पल ही हमारे साथ होते है।  पल ऐसे होते है जिनमे हम अपने जिंदगी को जीते है ।  जैसे अभी  मैं आपसब के साथ मैं अपना पल साझा कर रही हूँ | आज कल की ऐसे  भागती दुनिया में ये कुछ पल ही ऐसे हैं जो हमे सुकून दे जाते हैं |  मैंने भी ऐसे कुछ अच्छे और बुरे पल बिताये है जिसे में लिखना चाहती हूँ | मैं ये हमेशा से यही चाहती हूँ  की मेरे दुनिया से जाने के बाद मेरे अपने मुझे अपने पल  में रखे | क्यूंकि जब मैं उन्हें याद करूंगी तब वो मेरे इस पेज मैं पल के रूप में उन्हें उकेर दूंगी|  आप सब से भी यह आग्रह है की आप अगर चाहते है तो मेरे पेज के माध्यम से अपने पलो को मेरे साथ बांट सकते हैं| 







anamikasweta@gmail.com